सुनीता जॉर्ज धर्म से ईसाई और पेशे से मॉडल हैं। कल तक बड़े-बड़े माडलिंग असाइनमेंट्स, शोहरत और पैसा सब-कुछ था 25 साल की सुनीता के पास। सिर्फ एक घटना ने उसे करियर के बारे में दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया है। सुनीता कराची के पॉश बाजार जमजमा बुलेवार्ड के एक बुटीक पर अपनी दोस्तों के साथ शपिंग कर रही थी, कि दो दाढ़ीवालों ने सुनीता को अलग बुलाया और कहा कि वो पश्चिमी सभ्यता दर्शाते ये कपड़े पहनना फौरन छोड़ दे और घर के अंदर ‘इज्जत’ से रहे। वर्ना नतीजा भुगतने के लिये तैयार रहे।
ऐसा नहीं कि वो अपने देश में फैले आतंक के माहौल और उससे जुड़े-खतरों से बेपरवाह थी। उसे मालूम है किस तरह नार्द वेस्ट फ्रंटियर और फाटा इलाकों में जबरदस्ती औरतों को बुर्का पहनाने की कोशिश हो रही है और पुरुषों को शेव करने से रोका जा रहा है। लेकिन यह सिलसिला कराची तक पंहुचेगा, ये उसने कभी सोचा नहीं था।
पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों से ठीक उलट, कराची में औरतों का जींस पहनना, साड़ी पहनना और बिना बाजू के कुर्ते पहनना एक आम नजारा है। कराची वो शहर है जहां मध्यम-वर्गीय कामकाजी औरतों की तादाद देश में सबसे ज्यादा है। तो क्या यही वजह है कि आधुनिकता और विकास के दुश्मनों ने इस शहर को अपने अभियान का निशाना बनाया? बहुत दिनों पहले की बात नहीं है जब फ्रंटियर और फाटा इलाकों में लड़कियों के स्कूलों को बम से उड़ा दिया गया था। इन 300 स्कूलों में से, ज्यादातर फिर कभी नहीं खुल पाये। शादी-शुदा औरतों (जिन्हें अपने पतियों की इजाजत भी हासिल थी) को भी दफ्तर जाने से रोका जा रहा है।
अफगानिस्तान के बाद, शायद पाकिस्तान ही ऐसा देश है जहां सभ्यता पीछे का रुख कर रही है। धर्माधता, शरीर से होकर आत्मा तक को बीमार करती है। इसका पहला शिकार औरतों की आजादी होती है। कमजोर समाज में, औरतों की स्वतंत्रता और लैंगिकता को कब्जे में करके आसानी से अपनी ताकत का प्रदर्शन किया जा सकता है। जाहिर है सत्ता उसके हाथ है लोग जिसकी आज्ञा मानते हों। पाकिस्तान जैसे समाज में, ऐसे तालिबानी फरमानों ने पहले से मौजूद पुरूष प्रधान परमपराओं को सिर्फ बढ़ावा दिया है। इसीलिये इतनी बड़ी घटनाओं पर ज्यादा शोर भी नहीं सुनाई देता। इन धमकियों ने लड़कियों को चादरों में लपेट दिया है, वो घर से बाहर निकले में घबरा रही हैं। लेकिन क्या वाकई ये मामला एक या दूसरे तरह के कपड़े पहनने का है। महिलाओं की स्वतंत्रता सीधे तौर पर कानून व्यवस्था का सवाल नहीं है, जो किसी भी देश की सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी होना चाहिये।
वैसे आधुनिक एयरपोर्ट, बेहतरीन फ्लाइओवरों पर फर्राटे से दौड़ती गाड़ियों और चमचमाते बहुमंजिला शॉपिंग मॉल से कराची किसी भी अंतर्राष्ट्रीय शहर की तरह ही नजर आता है। किसको यकीन होगा कि इसी देश के एक हिस्से में 30 हजार फौजी 10 हजार जंगजुओं से जंग कर रहे हैं और अपने देश के अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस आधुनिक जीवन की रफ्तार के बीच जंग के बारे में सोचने की गुंजाइश कहां। लेकिन अगले ही पल नजारा बदलता है जब इस रोशनी का बदसूरत चेहरा सामने आता है। स्थानीय नागरिक आपको अकेले न चलने की सलाह देते हैं।
हालांकि पाकिस्तान में आतंकवाद से कहीं ज्यादा और कहीं बड़ी समस्या कमजोर होती अर्थव्यवस्था, कमर तोड़ती मंहगाई, बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं की कमी और लचर कानून व्यवस्था है। पर इस सबके बीच ही आतंकवाद को फलने-फूलने की जमीं मिल रही है। वरना किसकी मजाल है कि पुलिस, प्रशासन, अदालत और सक्रिय सरकार के रहते, सरेआम भरे बाजार लड़कियों के कपड़ों पर तालिबानी फरमान जारी हों। ऐसा भी नहीं है कि तालिबान के आने से पहले पाकिस्तान में औरतों के हालात बहुत बेहतर थे। लेकिन मौजूदा तालिबानीकरण ने तो जैसे पुरुषों को महिलाओं का जीवन तय करने का लाइसेंस ही दे दिया है।
लेकिन इस निराशा-भरे माहौल में रोशनी भरने वाली कोई और नहीं पाकिस्तानी औरतें ही हैं। धमकियों से निडर, अपनी ही जैसी औरतों के लिये काम करना, मुश्किल हालात में उनको न सिर्फ शरण देना बल्कि उनके अधिकारों के लिये अदालत और सरकार तक जाने वाली इन महिलाओं का जज्बा देखने लायक है। ये महिलायें राजनीतिक जुलूसों में हिस्सा लेती हैं, सड़कों पर, अदालत के सामने, अपने हक के लिये प्रदर्शन करती हैं। एक अच्छा संकेत ये भी है कि बड़ी तादाद में महिलाएं टीवी पत्रकार बन रही हैं। इनमें से कुछ नाम और चेहरे तो ऐसे हैं जो घर-घर में पहचाने जाने लगे हैं। आज के पाकिस्तान के ये दोनों ट्रेंड हैं, लेकिन फिलहाल खबरो में आतंकवाद ही है।
लेखिका टेलीविजन पत्रकार हैं
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